Madhu varma

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लेखनी कविता -परी बन जाती - बालस्वरूप राही

परी बन जाती / बालस्वरूप राही


पंख कहीं से मैं ला पाती
मैं भी एक परी बन पाती।

उड़ती जाती, धूम मचाती,
आसमान को छू कर आती।

चन्दा से चाँदनी चुराती,
अपनी जेबों में भर लाती।

पर सूरज से बच कर उड़ती,
पास पाहुचती ही झट मुड़ती।

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